प्रार्थना वही सार्थक मानी जाती है जो मांगने के लिए नहीं बल्कि जो मिला है उसका धन्यवाद करने के लिए की जाए।*_

प्रार्थना वही सार्थक मानी जाती है जो मांगने के लिए नहीं बल्कि जो मिला है उसका धन्यवाद करने के लिए की जाए।*_
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जिस प्रकार शरीर से रोगों को मिटाने के लिए औषधि का प्रयोग किया जाता है,,ठीक उसी प्रकार आत्मा के विकारों को नष्ट करने के लिए,और चित्त की निर्मलता बनी रहे के आशय से,,हमें सत्संग"भजन" रूपी दवा को लेते रहना परम आवश्यक है*
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_*चाहे जितना भी तय करलो*_
_*की जीवन के सब सुख पाने है...*_
       _*झोली में वो ही आएँगे,*_
         _*जो तेरे नाम के दाने है...*_
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सृष्टि  कितनी भी  परिवर्तित  हो जाए...*
*फिर भी हम पूर्ण सुखी नहीं हो सकते...*
*परंतु दृष्टि थोड़ी सी परिवर्तित हो जाए...*
*तो हम सदा के लिए सुखी हो सकते हैं...*

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