जय जय श्री राधे* 💐💐*एकादशी का आनन्द*_जनाबाई सेविका थीं। उनका सौभाग्य था कि वह संत नामदेव के घर में परिचारिका का काम करती थीं।

💐💐 *जय जय श्री राधे* 💐💐

*एकादशी का आनन्द*_

जनाबाई सेविका थीं। उनका सौभाग्य था कि वह संत नामदेव के घर में परिचारिका का काम करती थीं। पानी भरना, झाड़ू लगाना, बर्तन मांजना, कपड़े धोना और चक्की पीसना उनका नित्यकार्य था।_

_*संत नामदेव जी के घर में हमेशा भगवान का भजन कीर्तन होता था। भक्ति की अविरल सरिता बहती थी। धीरे धीरे जनाबाई भी इस सरिता में स्नान करने की अभ्यस्त हो गईं। मन और प्राणों के द्वार खुल गए। (संत संग का प्रभाव)*_

_भक्ति का प्रवाह अंदर तक होने लगा। अब तो जनाबाई के मुख ही नहीं प्राणों से भी पवित्र भगवन्नाम का का निरंतर उच्चारण होने लगा। *एक बार एकादशी के दिन संत नामदेव जी के यहां भक्तमंडली जमा हुई थी। पूरी रात भगवान विट्ठल का नाम कीर्तन चलता रहा। दिन भर व्रत के चलते जनाबाई ने अन्न ग्रहण नहीं किया था। भक्त जन कीर्तन करते रहे और एक कोने में बैठकर जनाबाई प्रेमाश्रु बहाती रहीं।*_

_द्वादशी का पक्ष लगा और पारण उपरांत, जनाबाई घर लौट गईं। पूरी रात की थकान थी। अगले दिन उठने में देर हो गई। जब नींद खुली तो हड़बड़ाकर उठ बैठीं। शीघ्र नित्यकर्म से निवृत होकर भक्त शिरोमणि नामदेव के घर पहुंची। झाड़ू किया, बर्तन मांजे और कपड़े धोने के लिए नजदीक चंद्रभागा नदी के किनारे पहुंचीं।_

_कपड़े धोते धोते ध्यान आया कि जिस कमरे में कीर्तन होता है उसे व्यवस्थित करना तो भूल ही गईं। कपड़े धोने के लिए डुबाए जा चुके थे। उसे छोड़कर जाना भी संभव नहीं था। *पूर्व दिन के एकादशी व्रत, भजन, संतो के संग और रात्रि जागरण का आनन्द था कि जनाबाई का हृद्य अपने आराध्य के लिए पूरी व्यवस्था नहीं कर पाने के बोझ से भर आया। भक्त के मन की पीड़ा भगवान तक पहुंच जाती है। वह तत्काल कोई न कोई उपाय करते हैं।*_

_*लीला हुई! जनाबाई चिंता में बैठी थीं कि तभी एक वृद्ध महिला वहां आ पहुंची और पूछा कि आखिर किस चिंता में डूबी हो! जनाबाई ने सारी परेशानी बता दी। उन्होंने कहा कि जाओ तुम कीर्तन का कमरा ठीक कर आओ तुम्हारे कपड़े मैं धो दूंगी। जनाबाई को तो जैसे संजीवनी मिल गई।* उन्होंने कहा, माता तुम कपड़े धोना मत। बस केवल देखभाल करती रहो, मैं तुरंत कमरा ठीक करके आती हूं। *प्रभु की माया! जनाबाई को इतना भी अवकाश नहीं था, कि वह सोचतीं कि आखिर यह वृद्धा है कौन! और उसके मन की व्यथा उसने इतनी आसानी से कैसे जान ली!* वो तुरंत भागीं और कमरे की व्यवस्था करके उल्टे पांव लौटीं।_

_तभी उन्होंने दूर से देखा की वो वृद्धा जा रही थीं और सारे कपड़े धुल कर सूख रहे थे। कपड़े धुल भी गए, सूख भी गए। यह सारा काम इतनी जल्दी कैसे हो गया! जनाबाई तुरंत उस वृद्धा के पीछे दौड़ीं और उन्हें रोकने की कोशिश की।_

_तभी उन्हें ठोकर लगी और गिर पड़ीं। थोड़ी देर के लिए दृष्टि ओझल हुई और वृद्धा नजरों के आगे से विलुप्त हो गईं। लेकिन *गीली मिट्टी पर उनके पैरों के निशान बने हुए थे। जनाबाई तुरंत जाकर वापस लौटीं। *भक्त नामदेव जी के यहां सभी भक्त जमा थे। उन्होंने यह घटना सभी को सुनाई। सभी ने आकर पैरों के उस निशान के दर्शन किए। उस मंडली में बड़े बड़े संत और महात्मा थे, वे तुरंत पहचान गए कि ये तो साक्षात महामाया के पांव के निशान हैं।*_

_नामदेव जी ने कहा जनाबाई तुम धन्य हो जिसके लिए स्वयं महामाया ने आकर कपड़े धोए। *इस घटना के बाद से जनाबाई की दशा ही विचित्र हो गई। वह भक्ति में इतनी लीन हो गईं, कि उनके रोम रोम से हर समय पवित्र भगवन्नाम निकलने लगा। फिर तो ये रोज की कहानी हो गई। घर के काम काज करते करते जनाबाई विह्वल हो जाया करती। नटखट नागर प्रभु विट्ठल ऐसे की समय की प्रतीक्षा में बैठे रहते थे।*_

_*जैसे ही जनाबाई भक्ति और प्रेम में अपनी सुधबुध खोती थीं, भगवान आकर उनकी जगह काम करने लगते थे। कभी चक्की पीस दी, कभी कुछ दूसरा काम कर दिया। जब जनाबाई का भावावेश खत्म होता था, तो उन्हें दिखता कि काम तो हो चुका है।*_

_इन्हीं घटनाओं का वर्णन करते हुए मराठी कवियों ने लिखा है- *जनी संग दलिले* यानी करुणामय प्रभु जनाबाई के साथ चक्की पीसते थे।_

_श्री मद्भगवद गीता में भगवान ने इसीलिए कहा हैः-_

*अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमंवहाम्यहम!*

_*(जो अनन्यभाव से मेरी उपासना करता है, उसके योगक्षेम का निर्वाह मैं स्वयं करता हूं!!)*_

एक संत का प्रसाद ✍️✍️

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