विरह**गुरू से प्रेम करने का सबसे बड़ा साधन है

*विरह*
*गुरू से प्रेम करने का सबसे बड़ा साधन है ''विरह''!!!जब गुरू की याद में शिष्य आँसू बहाता है तो वह आँसू गंगा से भी ज्यादा पवित्र हो जाती है!!*
*''विरह गुरू की प्रसन्नता को पाने का सबसे सहज और पावन तरीका है!!'विरह' प्रेम को प्रकट करती है और मजबूत भी बनाती है!!....................*
*विरह की तड़प ही प्रेमिका को प्रेम की राह तय करके प्रीतम की मंजिल तक पहुँचाती है!!*
*जिस हृदय में ''विरह'' पैदा नहीं होती,वह तो शमशान की तरह मनहूस है!!*
*ऐसा भी हो सकता है गुरू के दीदार में उम्मीद से कहीं ज्यादा समय लग जाए और विरह अग्नि में तन जलकर राख भी हो सकता है!!*
*लेकिन जो गुरू के सच्चे आशिक होते हैं बो हार नहीं मानते.........   दिल में मुर्शिद के दीदार की आशा,उम्मीद और उमंग सदा कायम रखते हैं!!*
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 *सभी महापुरषों का लक्ष्य  जाती - पाँति को खत्म कर राम - राज्य की स्थपना करना रहा है। राम जी अगर जाती  - पाँति मानते तो भीलनी (शबरी) और हनुमान का राम रोशन न होता।*

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