कृष्ण के पास होते हुए भी युधिष्ठिर , दुर्योधन और द्रौपदी तीनों ही उनका लाभ लेने से चूक गए । दुर्योधन को तो कृष्ण ने दो बार कुछ लेने का अवसर दिया , परंतु धन शक्ति और अभिमान के चलते वे लाभ लेने से चूक गए ।

कृष्ण के पास होते हुए भी युधिष्ठिर , दुर्योधन और द्रौपदी तीनों ही उनका लाभ लेने से चूक गए । दुर्योधन को तो कृष्ण ने दो बार कुछ लेने का अवसर दिया , परंतु धन शक्ति और अभिमान के चलते वे लाभ लेने से चूक गए ।  युधिष्ठिर सबसे बड़े होते हुए भी कृष्ण का लाभ न ले पाए । उल्टे कृष्ण से कह दिया कि वे द्यूत क्रीड़ा में भाग न लें और कक्ष से बाहर ही रहें । 
जब दुशासन रजस्वला द्रौपदी को केश पकड़कर द्यूत क्रीड़ा भवन में घसीटकर ले जा रहा था , जब भरी सभा में उन्हें निर्वस्त्र कराने का आदेश दे रहा था तब भी उन्होंने कृष्ण को याद नहीं किया । याद तब किया जब उनकी साड़ी खींची जाने लगी । बस कृष्ण आ गए , लाज बच गई ।

कृष्ण आते हैं , उन्हें याद करना पड़ता है । युधिष्ठिर जब एक के बाद एक सब कुछ हारे जा रहे थे , तब भी उन्होंने कृष्ण को याद नहीं किया । करते तो कृष्ण पासे पलट देते । दुर्योधन चतुर था । वह पासे फेंकने में कमजोर था । उसने पहले ही घोषणा कर दी कि उसकी ओर से चतुर मामा शकुनि पासे फेंकेंगे । युधिष्ठिर को तब भी कृष्ण की याद नहीं आई । अन्यथा वे भी कृष्ण से पासे खिलवाते तो द्यूत क्रीड़ा का इतिहास दूसरा होता । युधिष्ठिर चूक गए और कृष्ण के साथ होते हुए भी सब हार गए । 

कृष्ण की याद जिसे समय पर आई , वह अर्जुन था । युद्ध के बीच चारों तरफ अपनों को देखकर जब वह हताश हुआ , तब कृष्ण उसके साथ ही थे । उसने गांडीव रख दिया और खुद का समर्पण कृष्ण के सम्मुख कर दिया । फिर क्या था । माधव ने लंबी पराजय का इतिहास ही बदल दिया । सच है , मुरली बजैया को समय पर याद करना पड़ता है । उन्हें याद करने वालों में  विदुर भी थे और भीष्म भी । धृतराष्ट्र पुत्र मोह में चूक गए और तमाम कौरव भी । परिणाम देखिए , कुंती के पांचों जीवित रहे , गांधारी का कुल नष्ट हो गया । कृष्ण विमुख होकर न कृपाचार्य रहे और न द्रोण ।

कृष्ण साथ न हो तो भी कोई बात नहीं । उन्हें आदत है , वे पुकार पर चले आते हैं । महाभारत काल में कृष्ण साक्षात थे , परंतु उस समय के लोग चूक गए । सुदामा साथी थे , वे भी चूक गए । पर सुदामा की पत्नी न चूकी , किस्मत बदल गई । रामावतार में रावण जानते थे कि राम के आने का उद्देश्य क्या है । कृष्णावतार में  कंस अभागे थे , सगा भांजा कौन है , जान ही न पाए । 

कृष्ण को जानना और पहचानना जरूरी है । जिन खोजा तिन पाईयां गहरे पानी पैठ । कोई कृष्ण नहीं हो सकता , केवल कृष्ण को जान सकता है । कृष्ण आज भी हमारे आसपास हैं । उन पर भरोसा हो तो उन्हें पाना संभव है । कितनी अबलाएं आधुनिक असुरों का ग्रास बन रही हैं । क्या करें , कान्हा को कोई पुकारती ही नहीं । अपने पास पाएंगी , जरा पुकारिए तो सही ? याद रहे , बड़े छलिया हैं कन्हैया , बिना पुकारे नहीं आते ।
अजित  🙏

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