शान्ति और सुप्रभात दिव्य आत्मन
*खुशी को हमारे अंदर की भावना कहना गलत है*
*क्यूंकि जब आप इसे अपने लिए खोजते हैं, तो ये भावना हमारे अंदर ढूंढने से भी नहीं मिलती है*
*लेकिन यही खुशी जब आप दूसरों को देते हैं, तभी इसको आपके पास आने का रास्ता मिल जाता है*
🙏🏻सुख के दाता बन सुखदायी बनो
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देह-स्वरूप 'सतगुरु' के दर्शन करते समय अगर हम दर्शनों के प्रेम में इस प्रकार खो नहीं जाते कि अपनी और आस-पास की सुध-बुध ही न रहे तो हम सिर्फ सतगुरु को देख रहे होते हैं सतगुरु के 'दर्शन' नहीं कर रहे होते।
दर्शन प्रेमी की प्रियतम से नज़र न उठा सकने की बेबसी है। ऐसा ज़बरदस्ती या बनावट से नहीं होता प्रेम करने वाला बिल्कुल बेबस होता है प्रेम में यह बेबसी स्वभाविक है।
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भीखा बात अगम की कहन सुनन में नाहिं।_*
*_जो जाने सो कहे ना कहे सो जाने नाहिं।।_*
*_संत भीखा साहिब जी फरमाते है::-_*
कि आन्तरिक सूक्ष्म रूहानी अनुभव भाषा में बयान नहीं किये जा सकते, जिसके अन्तर में रूहानी रहस्य प्रकट हो जाते है, उसकी ज़ुबान बन्द हो जाती है
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