हे कृष्ण......|||||||||.....
कितना अनोखा प्रेम है
आज भी राधा बैठी है निकुंज में
कितना अतुल प्रेम है
आज भी कान्हा बैठा है कुंज गली में
कितना मधुर शृंगार है
आज भी राधा सजी है रास रचे
कितना सुरीला रव है
आज भी कान्हा बंसरी बजाता है
कितनी अदभुत अटखेलियां है
आज भी राधा रुठी है
कितनी अलौकिक अदा है
आज भी कान्हा राधा को मनाया है
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श्री राधे ||||||||||
||||||||| श्री राधे
श्री राधे
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